भारत में परंपरागत रूप से उगाई जाने वाली मोटे अनाजों की फसलों में सांवा की खेती का विशेष स्थान है। यह एक पोषक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज है, जिसे वर्षा आधारित क्षेत्रों में बहुत कम लागत और मेहनत से उगाया जा सकता है। बदलते मौसम और जलवायु संकट के बीच सांवा जैसी फसलें एकअच्छे विकल्प के रूप में उभर रही हैं।
सूखा के प्रति अत्यधिक सहनशील होने के साथ साथ जल-भराव की स्थिति को सहन करने में सक्षम है |इसे चावल की तरह खाया जाता है | इसकी चावल से बनी खीर पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होती है | इसके दाने पालतू पक्षियों को खिलाये जाते हैं |

सांवा क्या है ?
सांवा (Sanwa) को Little Millet भी कहा जाता है। यह छोटे दानों वाला अनाज है, जो गर्मियों के अंत और वर्षा ऋतु में उगाया जाता है। यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में बोया जाता है।
सांवा की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु अच्छी होती है, खरीफ में वर्षा आधारित खेती के लिए यह फसल अच्छी मानी जाती है | सांवा की खेती के लिए हल्की दोमट या बलुई मिटटी , जिसकी जल निकासी अच्छी हो उपयुक्त होती है |
भूमि की तैयारी :-
भूमि की तैयारी के लिए एक- दो बार जुताई करके पाटा चला देना चाहिए | बुवाई के पूर्व गोबर की खाद का प्रयोग 5 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिटटी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए |
बीज,बुवाई का समय :-
बीज की बुवाई मानसून प्रारंभ होने के साथ या फिर अधिकतम जुलाई के दुसरे सप्ताह तक करना चाहिए |
बीज की मात्रा कतार में बुवाई करने पर 08 – 10 कि.ग्रा./हे. की दर से तथा छिडकाव विधि से 12-15 कि.ग्रा./हे. की दर से करना चाहिए | कतार से कतार की दूरी 20-22 सेमी. रखना चाहिए | बोआई के पूर्व फफूंदनाशक दवा कार्वेन्डाजिम या कार्वोक्सिन का 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।
सांवा की उन्नतशील किस्म :-

* RAU-1 (राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी किस्म)
- यह राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई किस्म है।
- तैयार होने की अवधि: लगभग 65–70 दिन
- उत्पादन क्षमता: 8–10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
- विशेषता: सूखा सहनशील, जल्दी पकने वाली
* BL-8
- उत्तर भारत में प्रचलित किस्म
- उत्पादन क्षमता: 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
- विशेषता: छोटे और समान दाने, बेहतर स्वाद
* TNAU-78
- तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किस्म
- तैयार होने की अवधि: 60–65 दिन
- विशेषता: रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर, दक्षिण भारत में उपयुक्त
* RLM-37
- अनुसंधान केंद्रों द्वारा विकसित उन्नत किस्म
- खासियत: यह अधिक उपज देती है और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील है
* Local (स्थानीय देसी किस्में)
- आदिवासी क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से उगाई जाती हैं
- स्वाद और पोषण के लिहाज से समृद्ध
- लेकिन इनकी उत्पादन क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है
खाद एवं उर्वरक :-
20 किलो नत्रजन व 20 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें। नत्रजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई से पूर्व तथा शेष नत्रजन की आधी मात्रा बोआई के 3-4 सप्ताह बाद प्रथम निंदाई के बाद उपयोग करना चाहिए।
जैविक सांवा की खेती के लिए गोबर की खाद तथा वेर्मिकोम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए
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कीट/ रोग एवं उपचार :-
1.तना छेदक कीट (Stem Borer)
लक्षण:
- पौधे के तने में सुराख हो जाते हैं
- पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं
- कभी-कभी पौधा ऊपर से सूख जाता है
उपचार:
जैविक उपाय:
- नीम तेल (Neem Oil) का 5% घोल बनाकर छिड़काव करें
- ट्राइकोग्रामा (Trichogramma) परजीवी कीट का प्रयोग करें
रासायनिक उपाय:
- क्लोरपायरीफॉस 20% EC – 2.5 ml प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कें
2. माहू कीट (Aphids)
लक्षण:
- पत्तियों की निचली सतह पर छोटे-छोटे काले/हरे कीट दिखते हैं
- पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं और चिपचिपी हो जाती हैं
उपचार:
जैविक उपाय:
- नीम आधारित कीटनाशी (Azadirachtin 300 ppm) – 5 ml प्रति लीटर में छिड़काव करें
- 10 लहसुन की कलियाँ, 5 हरी मिर्च और 1 लीटर पानी पीसकर छान कर छिड़कें
रासायनिक उपाय:
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL – 0.5 ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें
3. फफूंदी रोग (Leaf Spot / Leaf Blight)
लक्षण:
- पत्तियों पर भूरे/काले धब्बे बनते हैं
- पत्तियाँ सूखने लगती हैं
- गंभीर स्थिति में उपज पर असर
उपचार:
जैविक उपाय:
- 1% बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें
- जीवामृत या गौमूत्र आधारित फफूंदी नाशक का प्रयोग करें
रासायनिक उपाय:
- कार्बेन्डाजिम 50% WP – 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिड़कें
- मैंकोजेब 75% WP – 2 ग्राम प्रति लीटर
4. जड़ सड़न (Root Rot)
लक्षण:
- पौधे नीचे से काले पड़ने लगते हैं
- जड़ें गल जाती हैं और पौधा गिर जाता है
उपचार:
जैविक उपाय:
- बुवाई से पहले बीज को Trichoderma viride से उपचारित करें
- खेत में अच्छी जल निकासी बनाएं
रासायनिक उपाय:
- कैप्टन या थिरम पाउडर से बीज शोधन करें – 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज
5. सफेद मक्खी (Whitefly)
लक्षण:
- पत्तियों से रस चूसती है
- पत्तियाँ पीली और चिपचिपी हो जाती हैं
- वायरस जनित रोग फैलाती है
उपचार:
जैविक उपाय:
- पीले चिपचिपे ट्रैप (Yellow Sticky Trap) का उपयोग करें
- नीम तेल स्प्रे
रासायनिक उपाय:
- थायमेथोक्सम 25% WG – 0.3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें
सांवा खाने के फायदे :-
- कम पानी में तैयार होने वाली फसल |
- 60-70 दिन में तैयार – जल्दी मुनाफा |
- उच्च पोषण तत्त्व – फाइबर, आयरन, कैल्शियम प्रचुर मात्रा में |
- ग्लूटेन-फ्री अनाज – डायबिटीज और मोटापे के रोगियों के लिए उपयोगी |
- कम लागत में अधिक उत्पादन |
- जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील | जैविक खेती के प्रकार: जानिए प्राकृतिक खेती को-
उत्पादन :-
लगभग 08-10 क्विंटल/हे. उत्पादन हो जाता है |
FAQs :-
Q1. सांवा की खेती किस मौसम में होती है?
उत्तर: खरीफ ऋतु (जून-जुलाई) में, वर्षा आधारित क्षेत्रों में होती है।
Q2. सांवा के मुख्य लाभ क्या हैं?
उत्तर: यह ग्लूटेन-फ्री, जल्दी पकने वाली, पोषक तत्वों से भरपूर और कम लागत की फसल है।
Q3. क्या सांवा फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती है?
उत्तर: सामान्यतः नहीं, यह वर्षा पर निर्भर फसल है, लेकिन सूखे में हल्की सिंचाई की जा सकती है।
Q4. क्या सांवा जैविक खेती के लिए उपयुक्त है?
उत्तर: हां, यह कीटों से कम प्रभावित होती है और जैविक खेती के लिए आदर्श है।
Q5. अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष कब हुआ ?
उत्तर : अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 में हुआ |